"में और मेरी साइकिल": Poem(Poetry) English-Hindi (Hinglish Poetry) Poetry aur Kavitayen
"में और मेरी साइकिल"
तेज रफ़्तार साइकल चलाना बहुत पसंद है उसको,
हवा के साथ उड़ते जाओ ऐसा लगता है उसको,
मैंने उसे यूँ ही उड़ते और बड़ते देखा है ।
मासूम हाँथो से हैंडल को कसके पकड़ते देखा है ।
आज उसे फिर ख़ुद से एक कदम और आगे बढ़ते देखा है ।
कुछ तो ख़ास होते देखा है उसको ,
प्यार मुझसे है तो सही मगर उसको,
साइकिल से बेइंतहा मोहब्बत करते मैंने देखा है।
आज उसे फिर ख़ुद से एक कदम और आगे बढ़ते देखा है।
ढलते उगते सूरज के साथ उसको,
जानने समझने की और चाह होती उसको,
टायरों की हवा को भी महसूस करते मैंने देखा है ।
ऐसा उसे करते मैंने कई कई बार देखा है।
आज उसे फिर ख़ुद से एक कदम और आगे बढ़ते देखा है।
में और मेरी साइकिल: Poem(Poetry) English-Hindi (Hinglish Poetry) Poetry aur Kavitayen |
उखड़ी सड़कों में अपनी साइकल से उसको,
संभलते और फिसलते देखा उसको,
बिना दूरी नापे मेंने उसे साइकल से आगे चलते देखा है।
आज उसे फिर ख़ुद से एक कदम और आगे बढ़ते देखा है।
मानो तो आसमान को साइकल से छुता देखा उसको,
ऐसी वैसी शिकायतों से गुजरता देखा उसको,
घर लौटा अपनी पहचान छोड चुकी उसकी चोट
को मैंने उसके गालो पर देखा है।
आज उसे फिर ख़ुद से एक कदम और आगे बढ़ते देखा है।
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