"अच्छा व्यवहार "( आप बीती कहानी ):STORIES; stories for kids; Hindi Kahaniya;English-Hindi (Hinglish) Poetry aur Kavitayen


"अच्छा व्यवहार "( आप बीती कहानी ):STORIES; stories for kids; Hindi Kahaniya;English-Hindi (Hinglish) Poetry aur Kavitayen


"अच्छा व्यवहार "( आप बीती कहानी )

कुछ काम सूझा, तो चल दी पास ही, एक मार्केट है, 10 मिनट  का रास्ता होगा लगभग, जाते जाते चप्पल  डाली और बोली, आती हूँ इतने में बेटे ने पीछे से आवाज़ लगाई, और कहने लगा, माँ में भी चलूँ बोरियत हो रही, मैंने ज्यादा ना सोचा  और ले चल दी उसे भी, अधिकतर उसे भीड़-भाड़ वाली जगह नहीं ले जाती, ख़ासकर लोकल मार्केट ,तो बस आधे रास्ते के पहले चौराहा पर एक पुराना हनुमान जी का मंदिर पड़ा, देख कर कुछ याद आया तो बस रुक के उनके दर्शन कर लूँ यही सोचकर बेटे को भी ले गई, जरा सा वक्त भी ना लगा और हमने दर्शन कर भी लिए साथ ही दिया-बाती भी की.

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अच्छा व्यवहार ( आप बीती कहानी )

पहली बार अपने बेटे को लेकर आई, सोचती हूँ तरह तरह का महोल देख सीख कर आगे बड़े. 
फिर क्योंकि शाम से पहले हमें वापस लौटना था , तो हम जल्द ही मार्केट में पहुँचे मुझे तो कन्या पूजन की कुछ वस्तुएँ लेनी थी , तो वहीं गई जहां पर हर एक चीज मिल जाए. उस दुकान पर अक्सर काम बन जाता है
उस दुकानदार की उम्र लगभग 60 -65  होगी। जिसमें की 3 लड़कियाँ भी उसकी सहायक है. दुकानदार पहले ख़ुद अपने ग्राहक को देखता है, तो मैंने फटाफट से उसे अपनी सारी ज़रूरत कि चीजें बताई और शांत खड़ी हो गई. क्योंकि पहली बार अपने बेटे को लाई थी तो आधा ध्यान उसपे भी था.

कुछ समय में एक और ग्राहक आ जाती है अवसर ही ऐसा था. मैंने दुकानदार से रुक-रुक के अपना समान माँगा, पर वो बार बार अनसुना कर दे, में शांत खड़ी रही कुछ और देर हुई और उसने मेरी और देख कर अपनी दुकान में काम कर रही लड़की को बाजुओं से ज़ोर से पकड़ कर धक्का देते हुए बोला ग्राहक की बात सुनो की वो क्या बोल रहा और उन्हें देखो कहते हुए झिंझोड़ देता है. उसपर वह लड़की पलट कर ग़ुस्से में तेज आवाज़ में जवाब देती है ,देख तो रही हूँ. एक पल और जाता है और में फिर यह भी देख शांत खाड़ी हो जाती हूँ. और बेटे की फ़िक्र में उसे में अपने पास करते हुए पकड़े रहती हूँ.

इसी बीच मुझे एक एहसास होता है की, जबसे घर से चले बेटे की ये लूँगा वो लूँगा अचानक सुनना बंद सा हो गया था. इतने में उसी लड़की ने मुझे बेचारी वाली नजरो से देखा और शर्मिंदा होके झुकी आँखों से पूछने लगी, "आपको क्या दिखाऊँ "बस उसी वक़्त में, मैंने उस घुटन को महसूस किया, जो वो कुछ ना कर पाने से, कुछ ना कह पाने से होती दिखी।

उसके मालिक का दबाव उनपर महसूस कर पाई. 
ख़ुद को छूने से, ना बचा पाने को महसूस कर पाई.
इतनी भीड़ में भी अकेली होना महसूस कर पाई, उन्हें कमजोर और बेचारी महसूस कर पाई.

उनकी ना सुनना और उनका ना कहना, दोनों ही ग़लत है.

में ऐसा होने क्यों दूँ? या में भी नहीं देखूँ? और में क्या ही करूँ??????????
ये सब सोचना छोडकर, उसकी जगह ख़ुद को पाके क्या महसूस होता है. वही ग़ुस्सा में ताक़त बनाऊँगी और उस दुकानदार को वहीं तुरंत रोककर, पूछा........  
'क्या तुम्हें नहीं पता, लड़कियों से बात कैसे करते है. उसने मुझे पलट कर बोला, लेना है कुछ या नहीं, उसे तो रत्ती भर भी फ़रक भी नहीं पड़ा।
मेरे लिये वो पल उस आवाज़ को सुनना था. जो ज़ोर-ज़ोर से बोल रही थी, तुम नहीं तो कौन है, जिसके भरोसे में  ये होने दूँ. 

अपने साथ खड़े उस भविष्य को देख रही थी,जो की मेरा बेटा था, ऐसा आदमी तो नहीं सोचा बने.

अपने बेटे को क्या सीख दे पाई, अगर चुप रही और ये होने दिया। मेरे कोमल मन को ये सब होता ठीक ना लगे और मैंने फ़ैसला किया, बोलने का........ 
उससे कहा, तुम्हें अपना तरीक़ा बदलना होगा , अपना व्यवहार और ये छोटी समझ भी.  
वो काम करती हैं आपके साथ, उनका सम्मान करो सहायक है वो। इतने में उस दुकानदार ने मुझे जाने को फिर कहा. 

उसी वक्त मैंने अपने बेटे से कहा, एक दिन ये भी छोटा था तब भी इसको बात करने की समझ नहीं थी और इसे किसी ने तब नहीं टोका और ऐसे ही धीरे-धीरे ये बड़ा होता गया और अच्छी बातों से दूर होता गया,आज ये ऐसा बन गया.

बेटे की उम् 10 है, उसे यह सब समझ आता है.
बेटे की आँखों में उस बदलाव को देख रही थी,जो वहाँ हो रहा था. लेकिन माँ होने के नाते में अपने बच्चे को दिखाना वही चाहती थी, जो में कर पाऊँ।


मैंने अपने लहज़े को नहीं छोड़ा और सख्त होकर उन लड़कियों को बोला। ......... ऐसा होने दोगी तो, करता रहेगा, रोकोगी नहीं तो बढ़ता रहेगा।।।।।।।।।।।।।

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मेरा यह मानना है, होता देखना।  .....  चुप रहना। .........  भी उतना ही ग़लत है, जितना की करने वाला ग़लत करता है.  सहना भी उतना ही ग़लत है, जितना की चुपचाप रहना। 

मेरा इरादा,उस दुकानदार को बदलने से जायदा ध्यान उन लोगों पर था ,जो सहते है......  और देखते है.......  जो गुजर जाते है........  जो होने देते है.......  जिसका परीणाम कभी भी लाभ दायक नहीं होगा।

बेटा मेरा थोड़ा शांत और ग़ुस्से में था ,पहली बार उसने अपनी माँ को इस तरह के माहोल में देखा। बेटे के लिये ये नया था और कहीं ना कहीं बड़ा भी। वहाँ से निकलते ही मैने बेटे से कहा........ देखा आपने किस तरह-तरह के लोग होते है, जिसपर वह बोल उठा, माँ मुझे उसपे बहुत ग़ुस्सा आ रहा है वो अच्छा नहीं था.
मैंने उसे पूरे दिल से कहा , आज ये पहली बार तो नहीं हुआ, मगर हम ऐसे ही रोकते-टोकते रहे तो ये सब आख़िरी बार ज़रूर होगा।


इस तरह हम घर आये और कन्या पूजन की तैयारी की औरअगले दिन सुबह कन्या पूजन किया। जो की बहुत आनन्दमय रहा और बच्चों का एकजुट होना और फिर उन्हें साथ और शांत रखना भी था. तो अचानक मैंने एक कहानी सुनाने का सोचा और कहा आओ कहानी सुनाऊँ। 
इस कहानी में मैंने पूरी तरह वही वाक़या सुनाया जो मार्केट में हुआ था. बच्चों को बताने का मक़सद बस इतना ही था , कि उन्हें उनकी समझ से क्या सही और क्या ग़लत लगता है, जानना था। और यह भी बताना था कि, हमें अच्छा ही व्यवहार करना चाहिए और एक हद में ही रहना चाहिए।

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अच्छा व्यवहार


ऐसे तो बच्चे शांत भी नहीं होते लेकिन कहानी का तरीक़ा काम आया. फिर मैंने उन बच्चो से कहा। कैसे मुझे और उन लड़कियों को क्या- क्या सहना पड़ा देखा आपने, तो एकदम से बच्चो का रिएक्शन आता है. कोई कहता मारना था, कोई कहता छोड़ेंगे नहीं, ऐसे कैसे मम्मा लोगों को परेशान किया। मम्मा तो अच्छी होती है. बात तो उन मासूम बच्चों के साफ़ मन की थी और इस वाक़या के पीछे छुपी सीख की है जो की है हमारा
अच्छा आचरण।
अच्छा स्वभाव।
अच्छा व्यवहार।
  •  घर हो, या हो बाहर, सदैव रहे "अच्छा व्यवहार". 

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